हाल ही में एक बन्धु ने बत्स जी से पूछा कि वे किस तरह से देवनागरी में ब्लॉग लिख सकते हैं.बत्स जी(तारीफ़ करनी ही पड़ेगी),जो डॉक्टर साहब के नाम से हमारे कार्यालय में ज्यादा जाने जाते हैं, कम्प्यूटर की दुनिया में ज़ोरदार दखल रखते हैं,आर-पार विचरण करते हैं,बनाने और बिगाड़ने की क्षमता रखते हैं(दादागिरी की हद तक). मेरे गोरखपुर प्रवास में कम्प्यूटर के प्रति अनुराग जगाने और जानकारियां देने में उनका सबसे बड़ा योगदान रहा.... तो सलाह देने के लिए उपयुक्त व्यक्ति हैं. लेकिन एकाएक मेरे दिमाग में ख़याल आया कि देवनागरी में लिखने की टिप्स तो मै भी दे सकता हूँ...फिर मुझे एक घटना याद आयी..
एम्.कॉम. की परीक्षा देते वक्त यह ख्याल सताता था कि अब इसके बाद क्या? भविष्य की फ़िक्र में कटियार जी,जो कि लंगोटिया मित्र और सहपाठी रहे हैं, से अपनी चिंता बताई.वे स्वयं भी ऐसे ही दौर से गुज़र रहे थे, बोले कि प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी हेतु एक कोचिंग खुलने वाली है. परीक्षा के पश्चात उसमे दाखिला ले लेंगे.मै कुछ निश्चिन्त हुआ. अगले दिन कटियार जी चिंतित मुद्रा में मिले और बोले...यार मै कोचिंग नहीं जा सकता. क्यों...?पुन: चिंतातुर मै...तब उन्होंने एक वर्ष पुराना राज़ उगला...
अब कटियार जी के शब्दों में "...दरअसल जिन भाईसाहब ने कोचिंग खोलने का बीड़ा उठाया है, उन्होंने पिछले वर्ष भी एक अन्य नाम से कोचिंग खोली थी. मै और मेरे एक मित्र ने उसमे admission लिया और दो दिन बाद कोचिंग में पढना छोड़, हम दोनों ने अपनी ही कोचिंग खोल ली. पहले ही दिन रिक्शा घुमवा कर प्रचार करवा दिया. अगले दिन सुबह ५ बजे कालबेल बजी..अलसाए मुंह नीचे आकर मैंने दरवाज़ा खोला तो ज़मीन सरक गयी.कोचिंग वाले भाईसाहब दरवाज़े पर खड़े थे. मैंने उन्हें नमस्कार किया. वे छूटते ही बोले-भाई कटियार जी,अपनी कोचिंग में मुझे भी दाखिला दे देना..."
खैर..बाद में हम दोनों ने उसमे दाखिला लिया.
इस कोचिंग में एक अन्य मित्र पहले दिन पेपर हल करने के बाद, मना करने के बावजूद वहां की पत्रिका लेकर बाहर चले आये. मैंने उन्हें पत्रिका वापस करने के लिए कहा तो बड़े भोलेपन से उन्होंने पूछा"..... तो क्या पत्रिका वहीं छोड़ कर आनी थी..मिलेगी नहीं"...बाद में उन्होंने कोचिंग छोड़ दी.
एम्.कॉम. की परीक्षा देते वक्त यह ख्याल सताता था कि अब इसके बाद क्या? भविष्य की फ़िक्र में कटियार जी,जो कि लंगोटिया मित्र और सहपाठी रहे हैं, से अपनी चिंता बताई.वे स्वयं भी ऐसे ही दौर से गुज़र रहे थे, बोले कि प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी हेतु एक कोचिंग खुलने वाली है. परीक्षा के पश्चात उसमे दाखिला ले लेंगे.मै कुछ निश्चिन्त हुआ. अगले दिन कटियार जी चिंतित मुद्रा में मिले और बोले...यार मै कोचिंग नहीं जा सकता. क्यों...?पुन: चिंतातुर मै...तब उन्होंने एक वर्ष पुराना राज़ उगला...
अब कटियार जी के शब्दों में "...दरअसल जिन भाईसाहब ने कोचिंग खोलने का बीड़ा उठाया है, उन्होंने पिछले वर्ष भी एक अन्य नाम से कोचिंग खोली थी. मै और मेरे एक मित्र ने उसमे admission लिया और दो दिन बाद कोचिंग में पढना छोड़, हम दोनों ने अपनी ही कोचिंग खोल ली. पहले ही दिन रिक्शा घुमवा कर प्रचार करवा दिया. अगले दिन सुबह ५ बजे कालबेल बजी..अलसाए मुंह नीचे आकर मैंने दरवाज़ा खोला तो ज़मीन सरक गयी.कोचिंग वाले भाईसाहब दरवाज़े पर खड़े थे. मैंने उन्हें नमस्कार किया. वे छूटते ही बोले-भाई कटियार जी,अपनी कोचिंग में मुझे भी दाखिला दे देना..."
खैर..बाद में हम दोनों ने उसमे दाखिला लिया.
इस कोचिंग में एक अन्य मित्र पहले दिन पेपर हल करने के बाद, मना करने के बावजूद वहां की पत्रिका लेकर बाहर चले आये. मैंने उन्हें पत्रिका वापस करने के लिए कहा तो बड़े भोलेपन से उन्होंने पूछा"..... तो क्या पत्रिका वहीं छोड़ कर आनी थी..मिलेगी नहीं"...बाद में उन्होंने कोचिंग छोड़ दी.
baddhiya... is-se achchhi baat kya ho sakti hai ki do din baad hi coaching kholne ki sthiti me pahunch gaye... kitne umda koti ke shishya the..
ReplyDeleteye doosre mitr na bhooto na bhavishyati hai.inke oopar mahan sahitya likha ja sakta hai.mai likhta rahunga...
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