Sunday, January 30, 2011

mukt srijan: स्मृति-प्रसंग

mukt srijan: स्मृति-प्रसंग: " मैं धार्मिक हूँ,पूरी तरह से,भले ही body language से ऐसा प्रतीत न हो. मुझे भी इसका भान कहाँ था. ज्ञानचक्..."

स्मृति-प्रसंग

       मैं धार्मिक हूँ,पूरी तरह से,भले ही body language से ऐसा प्रतीत न हो. मुझे भी इसका भान कहाँ था. ज्ञानचक्षु खुलते ही तब हैं जब हम किसी मुसीबत से दो-चार हो जाते हैं. दो चार होना उसी दिन से शुरू हो गया जिस दिन मैंने एक घर खरीदने का निर्णय लिया. धन देना, कोर्ट-कचेहरी के चक्कर, कार पर हमला, पी.एफ.का चेक dishonor होना मानो सर घुमा देने वाले वाकये थे. मेरे मित्र कांडपाल जी ने बिलकुल नई बात(विश्वास करूँ या नहीं) बताई की घर बनाने की सोचते ही शनिदेव का उपद्रव शुरू हो जाता है और घर बन जाने पर उपद्रव ख़त्म. वाकई शनि का नाम लेते ही आई परेशानी छूकर निकल जाती थी(गज़ब का संयोग है).
          रामचरितमानस सभी पढ़ते हैं. सबसे कम शायद मैंने ही पढ़ी हो. किन्तु जब मै उस प्रसंग पर पहुंचा जहां राम-लक्ष्मण  जनकपुरी में वाटिका में विचरण कर रहे हैं तभी सीता जी का प्रवेश वहां
 होता  है और राम व सीता  एकदूसरे का प्रथम दर्शन करते हैं, मैमन्त्रमुग्ध  सा संयोग,वियोग,विस्मय,अलंकारों का रसास्वादन कर रहा था. स्वयं तुलसीदास जी भी उस प्रसंग को उकेरने में अपनी लेखनी को अक्षम पाते हैं.
         गोरखपुर को स्थानान्तरण हुआ जो स्वयं में एक अनचाही किन्तु उपलब्धि है. यहाँ गीताप्रेस,जो कि अपनी पुस्तकों के लिए विश्वविख्यात है, के परिसर में स्थित लीला मंदिर स्वर्गिक अनुभूति प्रदान करता है. एक ओर रामलीला और दूसरी ओर कृष्णलीला. सैकड़ों वर्ष पुराने पर दिखने में नए चित्रों के माध्यम से वर्णन किया गया है. तब के  सामाजिक,आर्थिक,राजनैतिक,सांस्कृतिक जीवन का  क्या खूब खाका खींचा गया है. नगर व्यवस्था,अट्टालिकाएं आदि देखते बनती हैं. पाँव थक सकते हैं लेकिन मन नहीं भरता.
           १०० वर्ष पुरानी  छपाई की छोटी सी विदेशी मशीन हिफाज़त से कांच के कवर में दर्शनीय है.  धार्मिक अनुभूतियों को जगाता हुआ स्थान...अंत में-यहाँ के लोग भी बहुत अच्छे हैं.

Friday, January 28, 2011

क्या जागी सरकार.....

मानो भूचाल आ गया. महाराष्ट्र में मिलावटखोरों पर सरकार ने क़ानून का शिकंजा कसने की कवायद तूफानी ढंग से शुरू कर दी. शायद एक बलि का इंतज़ार था....पूरा हो गया. देश भर में तीखी प्रतिक्रियाएं हुईं और लेखकों.कानूनविदों,बुद्धजीवियों  ने मानो अनेकानेक विचार हवा में उछाल दिए. ठीक है...अब हो सकता है कि कुछ माह तक किसी सरकारी अफसर की हत्या नहीं होगी. कुछ माह तक हत्यारे टाइप के लोग सर झुका कर क़ानून से बचते रहेंगे और फिर बिना ज्यादा समय गंवाए  बगूले की तरह  पुनः उभरेंगे, छाती चौड़ी कर विद्युत्  विभाग के इंजीनियर या तेल कंपनी के अधिकारी जैसे कर्तव्यनिष्ठ लोगों को ढूंढेंगे. फिर सरकार चेतेगी और शिकंजा कसेगी.....दोस्तों! दिल थामिए...अगला कौन..?